मेरी नजर .......................आपकी कहानी
रविवार, 8 अगस्त 2010
"आधा गिलास पानी "
जीवन और कुछ नहीं आधा गिलास पानी भर है। जी हां सुख-दुख से भरा यह जीवन हमारे नजरिए पर टिका है। गिलास एक ही है परंतु किसी के लिए आधा खाली है तो किसी के लिए आधा भरा हुआ है। ऐसे ही यह जीवन है किसी के लिए दुखों का अम्बार है तो किसी के लिए खुशियों का खजाना। कोई अपने इस जन्म को, इस जीवन में आने को सौभाग्य समझता है तो कोई दुर्भाग्य। किसी का जीवन शिकायतों से भरा है तो किसी का धन्यवाद से। किसी को मरने की जल्दी है तो किसी को यह जीवन छोटा लगता है। एक ही जीवन है, एक ही अवसर है परंतु फिर भी अलग-अलग सोच है, भिन्न-भिन्न परिणाम हैं। सब कुछ हमारे नजरिए पर टिका है, हमारी समझ से जुड़ा है
सुख-दुख का कोई परिमाप नहीं है सब हमारी सोच पर, हमारे नजरिए पर निर्भर है। किसी के लिए कोई तारीख या वर्ष अच्छा है तो किसी के लिए वही तारीख वही वर्ष अशुभ हो जाता है। यह सब हम उनके परिणाम को देखकर तय करते हैं। और परिणाम कुछ और नहीं, हमारा नजरिया है। किसी को इस बात की चिंता है कि यह वर्ष इतनी जल्दी बीते जा रहा है तो किसी को इस बात की खुशी है कि अच्छा हुआ यह वर्ष बीत गया, अब नया वर्ष आएगा। किसी को इस वर्ष के अंत का इंतजार है तो किसी को नए वर्ष का इंतजार है। कोई तो ऐसे भी हैं जो दुखी हैं और इस वर्ष से, वर्ष की यादों से चिपके बैठे हैं। किसी को गम है कि वह एक वर्ष और बूढ़े हो गए तो किसी को खुशी है कि वह एक वर्ष और भी अनुभवी और प्रौढ़ हो गए हैं। इसलिए सब कुछ आप पर टिका है। आप चाहें तो गिलास को पूरा देखें या आधा सब आप पर निर्भर है
बुधवार, 4 अगस्त 2010
दिल्ली मेट्रो और भारत
शनिवार, 24 जुलाई 2010
दिल्ली की
आज दिल्ली में गर्मी का समस्या है ?
आज हम लोग एक आलग समस्या को जानेगे
कोई भी समाज में तीन उम्र के लोग होते है
पहला बच्चा दूसरा जवान और तीसरा है ........ बिरिर्ध
आज के समय में दिल्ली के लोग एक आलग तरह का जीवन जीना चाहते है इस जीवन में कोई किसी का
आदेश नहीं सुनना नहीं चाहता !
चाहे बच्चे हो , जवान हो .................. इनकी कोई गलती नहीं है
इनके बड़े ही इनको इस काबिल बनाया है
आज बड़े उम्र के लोग भी आपनी उम्र तो ऐसे छुपाते है जैसे मुर्गी छुपाती है बिल्ली से आपने बच्चे को ..
जवान उम्र के लोग तो आपने आप को तो बोलते है मै अभी तो बच्चा हु और आज दिल्ली में जवान लडकी लड़के बच्चे के माप की कपडे भी पहनते है और बोलते है " दिल तो बच्चा है जी !"
लेकिन माने तो बच्चे भी कम नहीं ! स्कुल जाने वाले बच्चे आपने आपको तो बच्चा मानते ही नहीं
आप लोग देखे होंगे रास्ते में जब बच्चे स्कुल जा रहे होते है लड़के तो दिल्ली में एसे स्कुल जाते है जैसे कोई गुंडा स्कुल जा रहा हो पुरे रास्ते लड़ते झगड़ते जाते है और उनकी बाते यदि गलती से सुन लो तो लगेगा की कब एक दुसरे से झगड़ ले ..............
और लडकियों का बात करे तो कहना नहीं है की ये स्कुल जा रही होती है या घुमने कोई मेला ...........
बच्चे चाहते है की हम बच्चे न दिखे और ये सब आप देख सकते है जब कोई "बुलु लाइन बस " वाला स्कुल जा रहे लडको को आपने बस के अंदर न ले ........... आप को बहुत कुछ सुनाने को भी मिलेगा
ये लड़के जब बस के अंदर होते हो और सड़क के किनारे लडकिया या फिर कोई अधिक उम्र की ओरत जा रही हो तब ये बच्चे पता नहीं एसे एसे शब्द बोलते है जिसको सुनाने में बुरा लगता है और ये स्कुल जाने वाले बच्चे बोलते है इससे यही समझ सकते है की बच्चे या तो घर में ये सब भाषा सिखाते है या फिर स्कुल में ...........स्कुल का बात करे तो दिल्ली सरकार बहुत रूपया खर्च का रही है बच्चे को नयी तकनीक की पढाई मिले लेकिन शायद इन बच्चो को कर्म की बाते ही नहीं सीखते ......... जो सबसे आधिक जरुरी है तभी तो आज दिल्ली जैसे शहर में बच्चे माँ बाप को जन से मार देते है इसमे बच्चे की कोई गलती मुझे नहीं दिखता कियोकी बच्चे एक सफेद पेपर के जैसा होता है इस पर घर के बड़े और स्कुल वाले जैसा लिखते है बच्चे वैसा ही कर्म करते है ..... दिल्ली की बात करे तो आज दिल्ली इतनी ही गन्दी हो गयी है की पति को पत्नी पर भरोसा नहीं होता की पति क्या करता ! और आज के दिल्ली वाले पति भी बहुत आगे निकल गए है पत्नी पर तो तनिक भी भरोसा नहीं करते ................एसे घर में ही देखते है बच्चे तो काम तो वैसा ही तो करेंगे .............
आज भी भारत की ७०% जनसंख्या गांव में रहती है और मै बोलता हु की गांव के बच्चे एसे नहीं होते .....
कियोकी माँ बाप को वहां पर भगवन मानते है ......................
आज दुनिया में लोग आपने बच्चे को भी आपने दोस्त बोलते है ताकि उनकी उम्र किसीको पाता नहीं चले लेकिन एसे लोग बोलते है की बच्चे को दोस्त समझना चाहिए
बच्चे को बच्चे समझे ताकि बच्चे भी आपने जीवन को अच्छे से जी सके.......
""""जय हिंद """"""""""जय भारत """""""""""जय जवान """"""""जय किसान """"जय बिज्ञान
सोमवार, 19 जुलाई 2010
मैंगलोर विमान हादसे ने ली 158 जिंदगियां! ......suri
मैंगलोर हवाई अड्डे पर शनिवार की सुबह जब सूरज निकल भी न था कि कई जिंदगियों का सूरज हमेशा-हमेशा के लिए डूब गया। दुबई से ढेर-सारे सपने अपने में समाये हुए यह विमान अपने देश, अपने घर की जमीन को छुआ भर ही था कि आग की लपटों में तबाह हो गया और उस आग में न जाने कितने सपने, कितने अरमान जलकर राख हो गए।
इस दुखद और भयानक विमान हादसे में 158 बदनसीब लोग मौत की नींद में सो गए, तो आठ खुशनसीब लोगों को जिंदगी ने अपनी आगोश में ले लिया। मौत की नींद में सोनेवालों में 23 मासूम बच्चे भी शामिल थे, जिन्होंने कभी सोचा भी न होगा कि दूर आसमान में जिसे उड़ता देख वे खुश हुआ करते थे, वही कभी उनकी जान भी ले लेगा!
उमर फारूक उन जीवित बचे लोगों में से हैं जो जैसे-तैसे दुर्घटनाग्रस्त विमान से बाहर निकलने में कामयाब रहे। उन्होंने कहा कि जब विमान उतर रहा था तभी उसका अगला चक्का फट गया और वे रनवे से बाहर निकल गए। इसके तत्काल बाद उसमें आग लग गई। विमान में दरार पड़ गई और वे उसी के जरिए बाहर निकलने में कामयाब रहा। उन्होंने बताया कि फारूक के साथ दो-तीन और लोग वहां से कूदे थे, लेकिन वे बच पाए या नहीं, यह पता नहीं है। फारूक के सिर और चेहरे का अधिकांश हिस्सा जल गया है।
जीवित बचनेवालों में से एक ने शिकायत की कि चालक दल ने उतरने से पूर्व यात्रियों को आगाह भी नहीं किया था। यहां तक कि उन्हें सीट बेल्ट बांधने की सूचना तक नहीं दी गई थी। उधर, एयर इंडिया प्रशासन का कहना है कि विमान चालकों ने विमान उतारते समय या विमान के हवाई पट्टी पर उतरने के बाद किसी भी तरह की विपत्ति का संकेत नहीं दिया। सरकार ने जांच के आदेश तो दे दिए हैं कि विमान दुर्घटना की जांच हो, लेकिन उन जिंदगियों का क्या होगा जो इस खौफनाक हादसे का शिकार हो गईं!
दुबई से उड़े एयर इंडिया के विमान आईएक्स-812 का बोइंग 737 में सवार 166 यात्रियों में से 158 लोग मौत का शिकार हुए हैं, लेकिन उनमें से ज्यादातर लोगों के शव इतने क्षत-विक्षत हालत में हैं कि उनकी शिनाख्त संभव नहीं है। विमान का अगला हिस्सा पूरी तरह जल गया है। विमान के गड्ढ़े में गिरने की वजह से हवाई अड्डा कर्मियों, पुलिस और अग्निशमन सेवा के कर्मियों को घटनास्थल पहुंचने में कुछ समय लगा, लेकिन फिर राहतकार्य शुरू गया। मुंबई से भी एक राहत विमान मैंगलोर के बाज्पे के हवाई अड्डे पर पहुंच गया है।
शुक्रवार, 11 जून 2010
वाराणसी की नाम कहानी ,,,,,,,,,,,,,,,,,सुरेन्द्र
यह द्वापरयुग की बात है जब भगवान श्रीकृष्ण के सुदर्शन चक्र ने काशी को जलाकर राख कर दिया था। बाद में यह वाराणसी के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
मगध का राजा जरासंध बहुत शक्तिशाली और क्रूर था। उसके पास अनगिनत सैनिक और दिव्य अस्त्र-शस्त्र थे। यही कारण था कि आस-पास के सभी राजा उसके प्रति मित्रता का भाव रखते थे। जरासंध की अस्ति और प्रस्ति नामक दो पुत्रियाँ थीं। उनका विवाह मथुरा के राजा कंस के साथ हुआ था
कंस अत्यंत पापी और दुष्ट राजा था। प्रजा को उसके अत्याचारों से बचाने के लिए भगवान श्रीकृष्ण ने उसका वध कर दिया। दामाद की मृत्यु की खबर सुनकर जरासंध क्रोधित हो उठा। प्रतिशोध की ज्वाला में जलते जरासंध ने कई बार मथुरा पर आक्रमण किया। किंतु हर बार श्रीकृष्ण उसे पराजित कर जीवित छोड़ देते थे।
एक बार उसने कलिंगराज पौंड्रक और काशीराज के साथ मिलकर मथुरा पर आक्रमण किया। लेकिन भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें भी पराजित कर दिया। जरासंध तो भाग निकला किंतु पौंड्रक और काशीराज भगवान के हाथों मारे गए।
काशीराज के बाद उसका पुत्र काशीराज बना और श्रीकृष्ण से बदला लेने का निश्चय किया। वह श्रीकृष्ण की शक्ति जानता था। इसलिए उसने कठिन तपस्या कर भगवान शिव को प्रसन्न किया और उन्हें समाप्त करने का वर माँगा। भगवान शिव ने उसे कोई अन्य वर माँगने को कहा। किंतु वह अपनी माँग पर अड़ा रहा।
तब शिव ने मंत्रों से एक भयंकर कृत्या बनाई और उसे देते हुए बोले-“वत्स! तुम इसे जिस दिशा में जाने का आदेश दोगे यह उसी दिशा में स्थित राज्य को जलाकर राख कर देगी। लेकिन ध्यान रखना, इसका प्रयोग किसी ब्राह्मण भक्त पर मत करना। वरना इसका प्रभाव निष्फल हो जाएगा।” यह कहकर भगवान शिव अंतर्धान हो गए।
इधर, दुष्ट कालयवन का वध करने के बाद श्रीकृष्ण सभी मथुरावासियों को लेकर द्वारिका आ गए थे। काशीराज ने श्रीकृष्ण का वध करने के लिए कृत्या को द्वारिका की ओर भेजा। काशीराज को यह ज्ञान नहीं था कि भगवान श्रीकृष्ण ब्राह्मण भक्त हैं। इसलिए द्वारिका पहुँचकर भी कृत्या उनका कुछ अहित न कर पाई। उल्टे श्रीकृष्ण ने अपना सुदर्शन चक्र उसकी ओर चला दिया। सुदर्शन भयंकर अग्नि उगलते हुए कृत्या की ओर झपटा। प्राण संकट में देख कृत्या भयभीत होकर काशी की ओर भागी।
सुदर्शन चक्र भी उसका पीछा करने लगा। काशी पहुँचकर सुदर्शन ने कृत्या को भस्म कर दिया। किंतु फिर भी उसका क्रोध शांत नहीं हुआ और उसने काशी को भस्म कर दिया।
कालान्तर में वारा और असि नामक दो नदियों के मध्य यह नगर पुनः बसा। वारा और असि नदियों के मध्य बसे होने के कारण इस नगर का नाम वाराणसी पड़ गया। इस प्रकार काशी का वाराणसी के रूप में पुनर्जन्म हुआ।